मलंग

तमाम-तर शुमार कर ले

पुरे हुजूम को अपने नाम कर ले

क़ाफिले तो बढ़ते रहेंगे

क़ाफिये तू अपने नाम कर ले

किसी मलंग को अपने हाल कर ले!

ता उम्र सताने वाले!

हसरतों को जवां करते रहे……अपनी लुत्फ़-ए-रवानी में सब को भुलाने वाले

धीरे धीरे हवा देते हैं……चिंगारियों को सजाने वाले

ता उम्र का वास्ता देते हैं…..ता उम्र सताने वाले!

ज़माना

यहां हर मोहर पर किसी ना किसी की अलामत है,

ए दीन के मालिक यहां कौन सलामत है

तू होश में है….यही काफी है,

बेहोश रहने दे ज़माने को….

जाग कर इसने क्या करना है,

सोया है…. सोने दे….ज़माने को!

 

ज़ुल्फ़

पहले मेरे चेहरे पे बिख़र गई
हवा के साथ मेरी छाती के बलों में उलझ गई
हाथ से पकड़ कर उसे निकाला तो हतेली से चिपक गई
बेख़याली में अपने ही बाल सवारे और वो ज़ुल्फ़ वहीं कहीं खोगई

कोहरा

कोहरे में सब कुछ कितना सुंदर लगता है, है ना
पता है क्यूँ, क्यूंकि कोहरा…सच…छुपता है, कुछ और ही दिखता है
धुंद की सफ़ेद दूधिया नुमा चादर में…छलावा बिछाता है
अक्सर लोग कोहरे में टकरा जाते हैं
कभी कभी….ख़ुदसे भी!