कुछ कहर भी ढाने पढ़ते हैं उन्हें
नई सहर जगाने वाले
बयाबां से गुज़रते हैं वो बाग़बान
नया जहाँ बसाने वाले!
कुछ कहर भी ढाने पढ़ते हैं उन्हें
नई सहर जगाने वाले
बयाबां से गुज़रते हैं वो बाग़बान
नया जहाँ बसाने वाले!
तमाम-तर शुमार कर ले
पुरे हुजूम को अपने नाम कर ले
क़ाफिले तो बढ़ते रहेंगे
क़ाफिये तू अपने नाम कर ले
किसी मलंग को अपने हाल कर ले!
हर हात साथ नहीं देता
ग़ैरों की महफ़िल में अपनों को आज़मा कर देखो
हर आंसू नमकीन नहीं होता
कभी आंसू भी चख कर देखो
हसरतों को जवां करते रहे……अपनी लुत्फ़-ए-रवानी में सब को भुलाने वाले
धीरे धीरे हवा देते हैं……चिंगारियों को सजाने वाले
ता उम्र का वास्ता देते हैं…..ता उम्र सताने वाले!
क्यूँ तुम मुझे तन्हा छोड़ते भी नहीं
क्यूँ तुम मुझे किसी मोड़ पर तन्हा मिलते ही नहीं!
जब चोरों की बस्ती में चोरी होगी
तो किस की तफ्तीश होगी
कोई तो इलज़ाम लेगा
किसी में तो ग़ैरत होगी!
अजीब लगता है
कोई गुरबत के दिनों में भी, मेरा एहतराम करता है
सुबह सूरज और शाम को चांद सलाम करता है
यहां हर मोहर पर किसी ना किसी की अलामत है,
ए दीन के मालिक यहां कौन सलामत है
तू होश में है….यही काफी है,
बेहोश रहने दे ज़माने को….
जाग कर इसने क्या करना है,
सोया है…. सोने दे….ज़माने को!
उम्र का हर दरिया….बहा आया हूँ
जो पुल थे वो ज़रिये….जला आया हूँ
किसी की यादों से….कुछ यादें लाया हूँ
किसी की याद में….मैं ख़ुद को छोड़ आया हूँ
झरोखों की यह फितरत है
सलाखें भीं तो झांकती हैं
अंदर भी और बाहर भी
सलाखों को भी यकीन है
मुजरिम अंदर भी है और बाहर भी!
प्रयत्नशील हूँ, में अस्थिर नहीं
जिज्ञासा है, लालसा नही
अनुभव की चिन्ता है, में अनुभवहीन नहीं!
अजीब नहीं लगता
जब बारिश में इतना पानी बरसता है
तो प्यास कम लगती है
काश की प्यास का तालुक पानी से ही होता
ना जाने यह मेरी खुशफ़हमी थी या उसकी खुशनसीबी
ज़िन्दगी में इश्क़ मुझे कई बार मिला
हर बार एक नया चेहरा मुझे इश्क़ से मिला
पहले मेरे चेहरे पे बिख़र गई
हवा के साथ मेरी छाती के बलों में उलझ गई
हाथ से पकड़ कर उसे निकाला तो हतेली से चिपक गई
बेख़याली में अपने ही बाल सवारे और वो ज़ुल्फ़ वहीं कहीं खोगई
कोहरे में सब कुछ कितना सुंदर लगता है, है ना
पता है क्यूँ, क्यूंकि कोहरा…सच…छुपता है, कुछ और ही दिखता है
धुंद की सफ़ेद दूधिया नुमा चादर में…छलावा बिछाता है
अक्सर लोग कोहरे में टकरा जाते हैं
कभी कभी….ख़ुदसे भी!